कई पीढ़ियों के पाप नष्ट करता है सफला एकादशी का व्रत

पौष मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह 9 जनवरी को है। यह व्रत मोक्षदायी माना जाता है। इसकी संपूर्णता के लिए रात्रि जागरण जरूरी है।

परिवार में किसी एक के भी एकादशी का व्रत करने से कई पीढ़ियों के पाप नष्ट हो जाते हैं। सफला एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। इसीलिए दशमी तिथि की रात में एक ही बार भोजन करना चाहिए।

एकादशी के दिन धूप, दीप व मौसम के अनुसार मीठे फल आदि से नारायण का पूजन करना चाहिए। द्वादशी तिथि के दिन स्नान करने के बाद जरूरतमंदों को अन्न,गर्म कपड़े और प्रतिष्ठा अनुसार दक्षिणा देने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

शरीर स्वस्थ हो तो किसी तीर्थस्थान में व्रत करना अति शुभ फल प्रदान करता है। जो व्रत न कर सकें, वे कम से कम चावल न खाएं और ब्रह्मचर्य रखें।

व्रत की कथा

चम्पावती नगरी में महिष्मत नाम के राजा के पांच पुत्र थे। बड़ा पुत्र चरित्रहीन था और देवताओं की निन्दा करता था। मांसभक्षण व अन्य बुराइयों ने भी उसमें प्रवेश कर लिया था, जिससे राजा और उसके भाइयों ने उसका नाम लुम्भक रख राज्य से बाहर निकाल दिया।

फिर उसने अपने ही नगर को लूट लिया। एक दिन उसे चोरी करते सिपाहियों ने पकड़ा, पर राजा का पुत्र जानकर छोड़ दिया। फिर वह वन में एक पीपल के नीचे रहने लगा।

पौष की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह सर्दी के कारण प्राणहीन सा हो गया। अगले दिन उसे चेतना प्राप्त हुई। तब वह वन से फल लेकर लौटा और उसने पीपल के पेड़ की जड़ में सभी फलों को रखते हुए कहा, ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु प्रसन्न हों।

तब उसे सफला एकादशी के प्रभाव से राज्य और पुत्र का वरदान मिला। इससे लुम्भक का मन अच्छे की ओर प्रवृत्त हुआ और तब उसके पिता ने उसे राज्य प्रदान किया।

उसे मनोज्ञ नामक पुत्र हुआ, जिसे बाद में राज्यसत्ता सौंप कर लुम्भक खुद विष्णु भजन में लग कर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा।

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