गणेश चतुर्थी 2025:
गणपति बप्पा मोरया!
कुछ ही दिनों में गणेश चतुर्थी का पर्व आने वाला है और पूरे देश में भक्ति और उत्साह का माहौल पहले से ही दिखाई देने लगा है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है और इसे भगवान गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी कहाँ प्रसिद्ध है?
हालाँकि यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसका सबसे भव्य रूप महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे शहरों में जगह-जगह विशाल पंडाल लगाए जाते हैं, जहाँ खूबसूरत गणपति मूर्तियों की स्थापना की जाती है। इसके अलावा गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में भी गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। धीरे-धीरे उत्तर भारत और विदेशों में बसे भारतीय भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाने लगे हैं।
भगवान गणेश की पूजा और महत्व
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा जाता है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से जीवन की सारी बाधाएँ दूर होती हैं और नए कार्यों की शुरुआत सफल होती है। गणेश चतुर्थी पर लोग अपने घरों और पंडालों में गणपति की मूर्ति स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और आरती करते हैं।
भगवान गणेश को मोदक सबसे प्रिय है। कहा जाता है कि गणेश जी को एक बार अनगिनत पकवानों में से सबसे अधिक मोदक पसंद आया और तभी से यह उनका प्रिय भोग माना जाने लगा। इसीलिए इस दिन खासतौर पर मोदक, लड्डू, पूरण पोली, नारियल और फल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
गणेश चतुर्थी की तैयारियाँ और उत्सव
त्योहार आने से पहले ही बाज़ारों में रौनक बढ़ जाती है। मूर्तिकार अलग-अलग आकार और डिज़ाइन की गणपति मूर्तियाँ बनाते हैं। कहीं पारंपरिक स्वरूप में तो कहीं आधुनिक अंदाज़ में बप्पा की झलक देखने को मिलती है। लोग मूर्तियाँ खरीदने के साथ-साथ सजावट के सामान, लाइटिंग और पूजा सामग्री भी जुटाते हैं।
जब बप्पा घर आते हैं, तो पूरा परिवार मिलकर उनका स्वागत करता है। पूजा के दौरान मंत्रोच्चारण, ढोल-ताशे की गूँज और भजन-संध्या से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक, हर कोई इस उत्सव में शामिल होता है।
गणेश चतुर्थी का इतिहास
🔱 पौराणिक कथा
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है।
पुराणों के अनुसार –
माता पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन (हल्दी/चंदन के लेप) से गणेश जी की रचना की और उन्हें द्वार पर बैठाकर स्नान करने चली गईं। उसी समय भगवान शिव वहाँ आए और अंदर प्रवेश करना चाहा। लेकिन गणेश जी ने माता के आदेश पर उन्हें रोक दिया।
इससे क्रोधित होकर शिव जी ने गणेश जी का शिरच्छेद (सिर काट दिया)। जब पार्वती जी बाहर आईं तो उन्होंने शोक और क्रोध में सम्पूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की ठान ली। तब शिव जी ने देवताओं को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए पहले जीव का सिर लेकर आएँ। उन्हें हाथी का सिर मिला और शिव जी ने उसे गणेश जी के धड़ पर स्थापित कर दिया। इस प्रकार गणेश जी का पुनर्जन्म हुआ और वे “विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता, बुद्धि और समृद्धि के देवता” बने।
इसी दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।
जीवन का प्रतीकात्मक संदेश
गणपति विसर्जन यह सिखाता है कि जीवन अस्थायी है।
जैसे गणेश जी की मूर्ति को बड़े उत्साह से घर लाया जाता है और फिर कुछ दिनों बाद विदा किया जाता है, वैसे ही जीवन में हर चीज़ का एक आरंभ और अंत होता है।
यह हमें अनित्य (अस्थायी) और मोह छोड़कर कर्तव्यनिष्ठ जीवन जीने की शिक्षा देता है।