Lucknow News: अंतरिक्ष की ऐतिहासिक यात्रा कर लौटे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने जहां पूरे देश का मान बढ़ाया, वहीं उनके साथ गया गगनयान मिशन बैज भी अब चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
यह बैज भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों और सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए एक अनूठा प्रतीक है। इसे राजधानी लखनऊ के डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने तैयार किया है।
विज्ञान और अध्यात्म का संगम
मनीष ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में बताया कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा, “इस बैज को डिजाइन करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुकून है। इसमें भारत की विज्ञान यात्रा, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का संगम दिखाने की कोशिश की गई है।”
बैज में कई प्रतीकात्मक चित्र उकेरे गए हैं—
- पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट
- उगता सूरज
- खगोलीय वेधशाला और ऐतिहासिक जंतर मंतर
- गगनयान मिशन का प्रतीक
अनंत खोज की निशानी इन्फिनिटी साइन
इसके केंद्र में अंतरिक्ष यात्री के हेलमेट आकार का ग्लोब है, जिसकी ठोड़ी पर भारत का नक्शा अंकित है। मनीष ने कहा कि यह दर्शाता है कि भारत की पहचान हर अंतरिक्ष अन्वेषण की उड़ान में साथ है।
पौराणिक और आधुनिक इतिहास की झलक
मनीष ने बताया कि उन्होंने बैज में पौराणिक और आधुनिक दोनों दृष्टिकोणों को शामिल किया है। “मैं हनुमान जी को पहला अंतरिक्ष यात्री मानता हूं, इसलिए इस बैज में पौराणिक और आधुनिक इतिहास की साझा झलक दी गई है। इसमें विज्ञान और अध्यात्म दोनों का संतुलन दिखाने का प्रयास किया गया है।”
नि:शुल्क राष्ट्र को समर्पित
इस बैज को तैयार करने में तीन से चार महीने का समय लगा। मनीष ने इसे नि:शुल्क डिजाइन किया और कहा कि उनके लिए पैसा प्राथमिकता नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा सर्वोपरि है। मनीष इससे पहले अयोध्या में विराजमान श्रीरामलला, राम दरबार, अन्नपूर्णा माता और दुर्गा माता के विग्रह की पोशाकें भी डिजाइन कर चुके हैं।
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तकनीकी रूप से सक्षम और हल्का
इसरो की सलाह पर बैज को हल्का और तकनीकी मानकों के अनुरूप बनाया गया। इसका आकार छोटा रखा गया, लेकिन इसमें भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों की पूरी गाथा समेटी गई। यह बैज अंतरिक्ष जाकर लौटा और अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित कई गणमान्य व्यक्तियों को भेंट किया गया है।
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शुभांशु शुक्ला का विश्वास
मनीष ने बताया कि इसरो के मिशन बैज डिजाइन करने के लिए उनका नाम खुद ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने सुझाया था। दोनों लखनऊ के सीएमएस स्कूल, अलीगंज के छात्र रहे हैं। उन्होंने गर्व से कहा, “शुभांशु हमारे सीनियर रहे हैं और उनका यह भरोसा मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह बैज अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है।”
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